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मालती जोशी की कहानियों में स्त्री- विमर्श, भारतीय संस्कृति और परंपरा का विशिष्ट भाव मिलता है

मालती जोशी की कहानियों में स्त्री- विमर्श, भारतीय संस्कृति और परंपरा का विशिष्ट भाव मिलता है

मालती जोशी की कहानियों में स्त्री- विमर्श, भारतीय संस्कृति और परंपरा का विशिष्ट भाव मिलता है

मालवा की मीरा के नाम से प्रसिद्ध और पद्मश्री से सम्मानित लेखिका मालती जोशी का निधन हो गया। वह 90 साल की थीं। उन्होंने अपने बेटे, साहित्यकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी के आवास पर पर अंतिम सांस ली। मालती जोशी जी ने हिंदी के साथ-साथ मराठी भाषा में 60 से अधिक किताबों का लेखन किया है। उनके लिखे साहित्य में मध्यांतर, पराजय, एक घर सपनों का, विश्वास गाथा, शापित शैशव आदि कहानी-ंसंग्रह शामिल हैं।

4 जून 1934 तो औरंगाबाद में जन्मी मालती ने आगरा विश्वविद्यालय से वर्ष 1956 में हिन्दी विषय से एम.ए. की शिक्षा ग्रहण की थी। उनकी रचनाओं का विभिन्न भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है। कई कहानियों का रंगमंचन रेडियो व दूर दर्शन पर नाट्य रूपान्तर भी प्रस्तुत किया जा चुका है। कुछ पर जया बच्चन द्वारा दूरदर्शन धारावाहिक सात फेरे का निर्माण किया गया है तथा कुछ कहानियां गुलज़ार के दूरदर्शन धारावाहिक किरदार में तथा भावना धारावाहिक में भी शामिल की जा चुकी हैं। इन्हें हिन्दी व मराठी की विभिन्न व साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया जा चुका है। मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा वर्ष 1998 के भवभूति अलंकरण सम्मान से विभूषित किया जा चुका है।

मालती जोशी की कहानियों में स्त्री- विमर्श, भारतीय संस्कृति और परंपरा का विशिष्ट भाव मिलता है। कहानियों के कथ्य शिल्प की एक नई शैली पाठकों को समय और समाज से जोड़ती है। शुरुआती दौर में वे कविताएं लिखा करती थीं। उनकी कविताओं से प्रभावित होकर उन्हें मालवा की मीरा नाम से भी संबोधित किया जाता था।