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हरिवंशराय बच्चन नए लिखने वालों को ज़रूर पढ़नी चाहिए महाकवि की कही ये ख़ास बातें

हरिवंशराय बच्चन  नए लिखने वालों को ज़रूर पढ़नी चाहिए महाकवि की कही ये ख़ास बातें

हरिवंशराय बच्चन नए लिखने वालों को ज़रूर पढ़नी चाहिए महाकवि की कही ये ख़ास बातें

साहित्य को प्रेम करने वाला और साहित्य को रचने वाला दोनों ही स्थितियों में शायद ही कोई अपवाद होगा जो महाकवि हरिवंश राय बच्चन के नाम से परिचित न हो। उन्होंने साहित्य को मधुशाला, मधुबाला, अग्निपथ और निशा निमंत्रण जैसी काव्य-रचनाएं दीं। 27 नवम्बर 1907 को पैदा हुए हरिवंश राय बच्चन ने लंबे समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। इसके बाद 2 साल तक कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में विलियम बट्लर येट्स पर पीएचडी की। बच्चन जी की हिंदी, उर्दू और अवधी भाषा पर अच्छी पकड़ थी। वह ओमर ख़य्याम की उर्दू-फ़ारसी कविताओं से बहुत प्रभावित थे। अग्निपथ फ़िल्म में बच्चन साहब की लिखी कविता का इस्तेमाल हुआ है।

निश्चित तौर पर उनका कविता को दिया दृष्टिकोण बहुत से युवा व नए लिखने वालों को दिशा दे सकता है। ऐसी ही कुछ बातें हैं जो उन्होंने कहीं और अगर उन पर अमल किया जाए तो एक बेहतरीन कवि या लेखक बना जा सकता है।

जब तब कवि ने भावना को आत्मसात नहीं किया, वह सफ़ल गीत नहीं रच सकेगा़।
कवि को शब्दों में कंजूसी भी बरतनी चाहिए क्योंकि रचना में अनावश्यक फैलाव यों तो साहित्य मात्र में अवांछनीय है पर गीत में तो उसका तनिक भी स्थान नहीं। इसलिए गीत को डिस्टिल्ड वॉटर कह सकते हैं।
सोचना पड़ेगा कि कविता क्या केवल उतनी विषय-वस्तुओं में ढ़ूंढ़ी जा सकती है, जो बाहर सुन्दर दिखाई दें। दर्शन, अध्यात्म, चिंतन, आन्तरिक विश्लेषण में क्या कविता नहीं हो सकती?

इस काव्य का संबंध वस्तु जगत से उतनी नहीं है जितना कि भाव जगत से है, पर इसके बावजूद यह कविता के अंतर्गत आ सकता है।

आदर्श यही रखना होगा कि हम मित्र की घटिया रचना को घटिया कह सकें और शत्रु की उम्दा रचना को उम्दा कह सकें।
शेक्सपियर की उक्ति है - राईपनेस इज़ ऑल - यही चीज़ लेखक में होनी चाहिए- मैच्युरिटी, अनुभव, सौष्ठव।