प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली!
मेरे ही मृदु उर में हँस बस,
श्वासों में भर मादक मधु-रस,
लघु कलिका के चल परिमल से
वे नभ छाए री मैं वन फूली!
प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली!
तज उनका गिरि-सा गुरु अंतर
मैं सिकता-कण सी आई झर;
आज सजनि उनसे परिचय क्या!
वे घन-चुंबित मैं पथ-धूली!
प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली!
उनकी वीणा की नव कंपन,
डाल गई री मुझ में जीवन!
खोज न पाई उसका पथ मैं
प्रतिध्वनि-सी सूने में झूली!
प्रिय सुधि भूले री मैं पथ भूली!