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चाहे पथ में शूल बिछाओ, हार न अपनी मानूँगा मैं

चाहे पथ में शूल बिछाओ, हार न अपनी मानूँगा मैं

चाहे पथ में शूल बिछाओ, हार न अपनी मानूँगा मैं

चाहे पथ में शूल बिछाओ
चाहे ज्वालामुखी बसाओ,
किंतु मुझे जब जाना ही है
तलवारों की धारों पर भी, हँस कर पैर बढ़ा लूँगा मैं!

मन में मरु-सी प्यास जगाओ,
रस की बूँद नहीं बरसाओ,
किंतु मुझे जब जीना ही है
मसल-मसल कर उर के छाले, अपनी प्यास बुझा लूँगा मैं!
हार न अपनी मानूँगा मैं!
चाहे चिर गायन सो जाए,
और हृदय मुर्दा हो जाए,
किंतु मुझे अब जीना ही है
बैठ चिता की छाती पर भी, मादक गीत सुना लूँगा मैं!

हार न अपनी मानूँगा मैं!