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कविता

चंद्रकांत देवताले की कविता 'शब्दों की पवित्रता के बारे में'

रोटी सेंकती पत्नी से हँसकर कहा मैंने
अगला फुलका बिल्कुल चंद्रमा की तरह बेदाग़ हो तो जानूँ
उसने याद दिलाया बेदाग़ नहीं होता कभी चंद्रमा

तो शब्दों की पवित्रता के बारे में सोचने लगा मैं
क्या शब्द रह सकते हैं प्रसन्न या उदास केवल अपने से
वह बोली चकोटी पर पड़ी कच्ची रोटी को दिखाते
यह है चंद्रमा जैसी दे दूँ इसे क्या बिना ही आँच दिखाए

अवकाश में रहते हैं शब्द शब्दकोश में टँगे नंगे अस्थिपंजर
शायद यही है पवित्रता शब्दों की
अपने अनुभव से हम नष्ट करते हैं कौमार्य शब्दों का
तब वे दहकते हैं और साबित होते हैं प्यार और आक्रमण करने लायक़

मैंने कहा सेंक दो रोटी तुम बढ़िया कड़क चुंदड़ी वाली
नहीं चाहिए मुझको चंद्रमा जैसी।

साहित्य

मशहूर अफ़सानानिगार सआदत हसन मंटो के अफ़्साने

घाटे का सौदा

दो दोस्तों ने मिल कर दस-बीस लड़कियों में से एक लड़की चुनी और बयालिस रुपये दे कर उसे ख़रीद लिया।
रात गुज़ार कर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा, तुम्हारा नाम क्या है?
लड़की ने अपना नाम बताया तो वो भिन्ना गया। हम से तो कहा गया था कि तुम दूसरे मज़हब की हो।
लड़की ने जवाब दिया, "उस ने झूट बोला था।

ये सुन कर वह दौड़ा दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा,
इस ने हमारे साथ धोका किया है हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी... चलो वापस कर आएँ।
उलाहना
देखो यार। तुम ने ब्लैक मार्केट के दाम भी लिए और ऐसा रद्दी पेट्रोल दिया कि एक दुकान भी न जली।

पेश-बंदी
पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।

दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन कर दिया गया।

तीसरा केस रात के बारह बजे लांड्री के पास हुआ। जब इन्सपेक्टर ने सिपाही को इस नई जगह पहरा देने का हुक्म दिया तो उसने कुछ ग़ौर करने के बाद कहा,

मुझे वहां खड़ा कीजिए जहां नई वारदात होने वाली है।

सदक़े उसके
मुजरा ख़त्म हुआ, तमाशाई रुख़्सत हो गए तो उस्तादी जी ने कहा,

सब कुछ लुटा पिटा कर यहां आए थे लेकिन अल्लाह मियां ने चंद दिनों में ही वारे न्यारे कर दिए।

सफ़ाई पसंद
गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।

खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,

क्यूं जनाब कोई मुर्ग़ा है।

एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया,

जी नहीं।

थोड़ी देर के बाद चार नेज़ा बर्दार आए। खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,

क्यूं जनाब कोई मुर्ग़ा है।

उस मुसाफ़िर ने जो पहले कुछ कहते कहते रुक गया था जवाब दिया,

जी मालूम नहीं आप अंदर आ के संडास में देख लीजिए।

नेज़ा बर्दार अंदर दाख़िल हुए। संडास तोड़ा गया तो उसमें से एक मुर्ग़ा निकल आया।

एक नेज़ा बर्दार ने कहा,

कर दो हलाल।

दूसरे ने कहा,

नहीं यहां नहीं। डिब्बा ख़राब हो जाएगा बाहर ले चलो।

ख़बरदार
बलवाई मालिक मकान को बड़ी मुश्किलों से घसीट कर बाहर ले आए।

कपड़े झाड़ कर वो उठ खड़ा हुआ और बलवाइयों से कहने लगा,
तुम मुझे मार डालो लेकिन ख़बरदार जो मेरे रुपये पैसे को हाथ लगाया।

साहित्य

मालती जोशी की कहानियों में स्त्री- विमर्श, भारतीय संस्कृति और परंपरा का विशिष्ट भाव मिलता है

मालवा की मीरा के नाम से प्रसिद्ध और पद्मश्री से सम्मानित लेखिका मालती जोशी का निधन हो गया। वह 90 साल की थीं। उन्होंने अपने बेटे, साहित्यकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी के आवास पर पर अंतिम सांस ली। मालती जोशी जी ने हिंदी के साथ-साथ मराठी भाषा में 60 से अधिक किताबों का लेखन किया है। उनके लिखे साहित्य में मध्यांतर, पराजय, एक घर सपनों का, विश्वास गाथा, शापित शैशव आदि कहानी-ंसंग्रह शामिल हैं।

4 जून 1934 तो औरंगाबाद में जन्मी मालती ने आगरा विश्वविद्यालय से वर्ष 1956 में हिन्दी विषय से एम.ए. की शिक्षा ग्रहण की थी। उनकी रचनाओं का विभिन्न भारतीय व विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है। कई कहानियों का रंगमंचन रेडियो व दूर दर्शन पर नाट्य रूपान्तर भी प्रस्तुत किया जा चुका है। कुछ पर जया बच्चन द्वारा दूरदर्शन धारावाहिक सात फेरे का निर्माण किया गया है तथा कुछ कहानियां गुलज़ार के दूरदर्शन धारावाहिक किरदार में तथा भावना धारावाहिक में भी शामिल की जा चुकी हैं। इन्हें हिन्दी व मराठी की विभिन्न व साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत किया जा चुका है। मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा वर्ष 1998 के भवभूति अलंकरण सम्मान से विभूषित किया जा चुका है।

मालती जोशी की कहानियों में स्त्री- विमर्श, भारतीय संस्कृति और परंपरा का विशिष्ट भाव मिलता है। कहानियों के कथ्य शिल्प की एक नई शैली पाठकों को समय और समाज से जोड़ती है। शुरुआती दौर में वे कविताएं लिखा करती थीं। उनकी कविताओं से प्रभावित होकर उन्हें मालवा की मीरा नाम से भी संबोधित किया जाता था।

साहित्य

हरिवंशराय बच्चन नए लिखने वालों को ज़रूर पढ़नी चाहिए महाकवि की कही ये ख़ास बातें

साहित्य को प्रेम करने वाला और साहित्य को रचने वाला दोनों ही स्थितियों में शायद ही कोई अपवाद होगा जो महाकवि हरिवंश राय बच्चन के नाम से परिचित न हो। उन्होंने साहित्य को मधुशाला, मधुबाला, अग्निपथ और निशा निमंत्रण जैसी काव्य-रचनाएं दीं। 27 नवम्बर 1907 को पैदा हुए हरिवंश राय बच्चन ने लंबे समय तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया। इसके बाद 2 साल तक कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में विलियम बट्लर येट्स पर पीएचडी की। बच्चन जी की हिंदी, उर्दू और अवधी भाषा पर अच्छी पकड़ थी। वह ओमर ख़य्याम की उर्दू-फ़ारसी कविताओं से बहुत प्रभावित थे। अग्निपथ फ़िल्म में बच्चन साहब की लिखी कविता का इस्तेमाल हुआ है।

निश्चित तौर पर उनका कविता को दिया दृष्टिकोण बहुत से युवा व नए लिखने वालों को दिशा दे सकता है। ऐसी ही कुछ बातें हैं जो उन्होंने कहीं और अगर उन पर अमल किया जाए तो एक बेहतरीन कवि या लेखक बना जा सकता है।

जब तब कवि ने भावना को आत्मसात नहीं किया, वह सफ़ल गीत नहीं रच सकेगा़।
कवि को शब्दों में कंजूसी भी बरतनी चाहिए क्योंकि रचना में अनावश्यक फैलाव यों तो साहित्य मात्र में अवांछनीय है पर गीत में तो उसका तनिक भी स्थान नहीं। इसलिए गीत को डिस्टिल्ड वॉटर कह सकते हैं।
सोचना पड़ेगा कि कविता क्या केवल उतनी विषय-वस्तुओं में ढ़ूंढ़ी जा सकती है, जो बाहर सुन्दर दिखाई दें। दर्शन, अध्यात्म, चिंतन, आन्तरिक विश्लेषण में क्या कविता नहीं हो सकती?

इस काव्य का संबंध वस्तु जगत से उतनी नहीं है जितना कि भाव जगत से है, पर इसके बावजूद यह कविता के अंतर्गत आ सकता है।

आदर्श यही रखना होगा कि हम मित्र की घटिया रचना को घटिया कह सकें और शत्रु की उम्दा रचना को उम्दा कह सकें।
शेक्सपियर की उक्ति है - राईपनेस इज़ ऑल - यही चीज़ लेखक में होनी चाहिए- मैच्युरिटी, अनुभव, सौष्ठव।

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